Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

क्या शहादत के सम्मान का यही तरीका है ?

कई न्यूज़ चैनलों पर पाकिस्तान से वक्ताओं को बुलाकर उनसे जो नूरा कुश्ती हो रही है उसका क्या मक़सद है?

रवीश कुमार। लेफ़्टिनेंट कर्नल सहित सात जवान शहीद हुए हैं । एक कृतज्ञ राष्ट्र को क्या करना चाहिए ? क्या उसे चुप रहकर शोक जताना चाहिए या बोलने के नाम पर चैनलों पर बोलने की असभ्यता के हर चरम को छू लेना चाहिए ? क्या आपको ऐसा होता हुआ दिख रहा है ? कई न्यूज़ चैनलों पर पाकिस्तान से वक्ताओं को बुलाकर उनसे जो नूरा कुश्ती हो रही है उसका क्या मक़सद है ? शहादत के इस ग़म को क्या हम इस तरह ग़लत करेंगे ? भड़काऊ वक्ताओं को इधर के भड़काऊ वक्ताओं से भिड़ाकर हम कौन सा जवाब हासिल करना चाहते हैं ? क्या जवाब मिलता भी है ? सनक की भी एक सीमा होती है ।

ऐसा लगता है कि हम आक्रामक होने के बहाने शहादत का अपमान कर रहे हैं । इन पाकिस्तानी मेहमानों के ज़रिये कहीं पाकिस्तान विरोधी कुंठा को हवा तो नहीं दी जा रही है । इस कुंठा को हवा तो कभी भी दी जा सकती है लेकिन ऐसा करके क्या हम वाक़ई शहादत का सम्मान कर रहे हैं ? क्या ये पाकिस्तानी मेहमान कुछ नई बात कह रहे हैं ? चैनलों पर पाकिस्तान से कौन लोग बुलाये जा रहे हैं ? क्या वही लोग हैं जो इधर के हर सवाल को तू तू मैं मैं में बदल देते हैं और इधर के वक़्ता भी उन पर टूट पड़ते हैं । कोई किसी को सुन नहीं रहा । कोई किसी को बोलने नहीं दे रहा । इस घटना पर दोनों देशों के जिम्मेदार लोग बोल रहे होते तो भी बात समझ आती लेकिन वही बोले जा रहे हैं जिन्हें घटना की पूरी जानकारी तक नहीं । जिनका मक़सद इतना ही है कि टीवी की बहस में पाकिस्तान को अच्छे से सुना देना । पाकिस्तान वाले का मक़सद है भारत को सुना देना । किसी की शहादत पर गली मोहल्ले के झगड़े सी भाषा उसका सम्मान नहीं हो सकती है ? उनका परिवार टीवी देखता होगा तो क्या सोचता होगा ।

क्या यही एकमात्र और बेहतर तरीका है ? अपनी कमियों और चूक पर कोई सवाल क्यों नहीं है ? क्या इस सवाल से बचने के लिए मुँहतोड़ जवाब और बातचीत के औचित्य के सवाल को उभारा जा रहा है ? दो दिन से पठानकोट एयरबेस में गोलीबारी चल रही है लेकिन आप देख सकते हैं कि गृहमंत्री का असम दौरा रद्द नहीं होता है । बंगलुरू जाकर प्रधानमंत्री योग पर लेक्चर देते हैं । सबका ज़रूरी काम जारी है । टीवी पर इनके इधर उधर से बाइट आ जाते हैं । उन्हें सुनकर तो नहीं लगता कि कोई गंभीर घटना हुई है । हम संपर्क में है और कार्डिनेशन है । लेकिन ज़ख़्मी जवान को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं है । कार से ले जाया जाता है । बस नाकाम कर दिया और जवाब दे दिया का बयान आते रहता है ।

क्या नाकाम कर दिया ? दो दिनों से आतंकवादी हमारे सबसे सुरक्षित गढ़ में घुसे हुए हैं । हम ठीक से बता नहीं पाते कि पाँच आतंकवादी शनिवार को मारे गए या रविवार को पाँचवा मारा गया । ख़ुफ़िया जानकारी के दावे के बाद भी वो एयरबेस में कैसे घुस आए ? एस पी कहाँ है ? उसकी शिकायत के बाद क्या क्या किया गया ऐसी अधिकृत जानकारियाँ क्यों नहीं हैं ? सीमावर्ती इलाक़े का एस पी क्या सुरक्षाकर्मी की जगह रसोइया लेकर घूमता है ? उसके पास बंदूक थी या नहीं ? एस पी ने क्या किया ?

कहीं सभी इस आतंकी हमले से जुड़े सवालों से भागने का प्रयास तो नहीं कर रहे ? हम अपनी बात क्यों नहीं करते ? क्या ये चैनल भारत सरकार के कूटनीतिक चैनलों से ज़्यादा पाकिस्तान को प्रभावित कर सकते हैं ? हम सीमा पार से बुलाये गए नकारे विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों को बुलाकर क्या हासिल कर रहे हैं ? वो तो हमले को ही प्रायोजित बता रहे हैं । क्या उनके दावों को भारत सरकार गंभीरता से लेती है ?  एंकर भले उन पाकिस्तानी वक्ताओं पर चिल्ला दे लेकिन क्या हम इतने से ही संतुष्ट हो जाने वाले पत्थर दिल समाज हो गए हैं ? मैं कभी युद्ध की बात नहीं करता लेकिन निश्चित रूप से शहादत पर शोक मनाने का यह तरीका नहीं है ।

हम सबको गर्व है लेकिन क्यों इस गर्व में किसी के जाने का दुख शामिल नहीं है ? क्या हम उनकी शहादत के गौरवशाली क्षण को चैनलों की तू तू मैं मैं वाली बहसों से अलंकृत कर रहे हैं ? हम कहाँ तक और कितना गिरेंगे ? क्या इस तरह से लोक विमर्श बनेगा । हम रात को टीवी के सामने कुछ दर्शकों की कुंठा का सेवन कर क्या कहना चाहते हैं ? इन नक़ली राष्ट्रवादी बहसों से सुरक्षा से जुड़े सवालों के जवाब कब तक दिये जायेंगे । सोशल मीडिया पर इस घटना के बहाने मोदी समर्थक मोदी विरोधियों का मैच चल रहा है । उनकी भाषा में भी शहादत का ग़म नहीं है । गौरव भी कहने भर है । कोई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को हटाने का हैशटैग चला रहा है तो कोई मोदी का पुराना ट्वीट निकाल रहा है । सवालों की औकात इतनी ही है कि पूछे ही जा रहे हैं । जवाब देने की ज़िम्मेदारी और शालीनता किसी में नहीं । हम ज़रूरत से ज्यादा सामान्य होते जा रहे हैं ।

(रवीश जी के ब्लॉग कस्बा से साभार) 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना