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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लालू-नीतीश को ट्रैप करते, खुद उनके जाल में आ फंसा मीडिया

अपराध पर छिड़ी बयानबाजी को मीडिया ने लपका. जंगल राज का शोर आसमान पर गूंजा. फिर मीडिया के एक हिस्से ने लालू-नीतीश को ट्रैप में लेने की कोशिश की पर खुद मीडिया ही उनके ट्रैप में आ फंसा.जानिये कैसे.

इर्शादुल हक/ लोकतंत्र के तीन प्रमुख प्लेयर्स हैं- पक्ष, विपक्ष और मीडिया. पक्ष-विपक्ष की भूमिका जो है सो है, पर मीडिया की भूमिका वस्तुनिष्ठ खबरें बताने-दिखाने तक सीमित है. लेकिन कई बार मीडिया का एक वर्ग, कर बिहार के संदर्भ में, अति सक्रिय हो जाता है. अपराध पर चर्चा के बाद बिहार के संदर्भ में मीडिया ने जंगल राज पार्ट-2 पर बहस छेड़ी. गठबंधन सरकार बनने के बाद यह पहला अवसर था जब मीडिया ने सरकार पर हल्ला बोला.

बात का बतंगड़

देखते-देखते जंगल राज की बहस, बहसों के केंद्र में आ गयी. कुछ पत्रकारों ने यह मान लिया कि गठबंधन सरकार को उन्होंने ट्रैप में ले लिया है. सो अपराध के बहाने राजद-जद यू संबधों के बीच कथित खटास को हवा देनी शुरू कर दी. इसके लिए उन्होंने लालू की उस प्रेस कांफ्रेंस को आधार बनाया जिसमें उन्होंने कहा था कि अपराधियों और अपराध पर नियंत्रण करें नीतीश. लालू ने प्रेस कांफ्रेंस में यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर लोग चाहें तो सीधे उन्हें भी फोन करें. इस बयान को कुछ अखबारों और चैनलों ने नीतीश को लालू की ‘नसीहत’ के रूप में प्रचारित किया. दूसरे ही दिन कुछ पत्रकारों ने राजद-जद यू के प्रवक्ताओं को फोन घूमाया- जद यू प्रवक्ताओं से पूछा गया कि नीतीश को लालू ‘नसीहत’ दे रहे हैं, यह तो ठीक नहीं. जद यू के प्रवक्ता, पत्रकारों के लाइन को नहीं समझ पाये सो कह दिया कि नीतीश जी को नसीहत की जरूरत नहीं, सुशासन तो नीतीश जी का यूएसपी है.

फिर क्या था खबरों की रंगत बदल गयी. सुर्खियां बनने लगी कि राजद-जद यू के नेता आपस में भिड़ गये. इसके बाद कुछ पत्रकारों ने मान लिया कि सचमुच राजद-जद यू के नेता उनके ट्रैप में आ गये. हुआ भी यही. वे मीडिया के ट्रैप में आ ही गये. पर सियासी दृष्टि के महारथी लालू-नीतीश ने अपनी गोटिया इसके बाद में चलनी शुरू की और फिर पाशा ही पलट गया.

ऐसे ट्रैप में आया मीडिया

सबसे पहले लालू ने पर्दे के पीछे से कमान संभाली, फिर नीतीश ने. अगर आप बिहारी सियासत पर नजर रखते हैं तो आपको अंदाजा होगा कि जब से गठबंधन बना है तब से राजद की तरफ से विवादों को हवा देने की रणनीतिक जिम्मेदारी रघुवंश प्रसाद सिंह संभालते हैं. सो संभवत: इसी रणनीति के तहत रघुवंश सिंह को बयानबाजी के मैदान में उतारा गया. उन्होंने बयान दिया. कहा- ‘नीतीश स्टीयरिंग पर बैठे हैं. उनके पास गृह विभाग है. लॉ ऐंड ऑर्डर की जिम्मेदारी उनकी है पर हम भी सरकार का हिस्सा हैं सो हम चुप कैसे रह सकते हैं. नीतीश अपराध पर काबू पायें’.

उधर ऐसे विवादों पर टीका-टिप्पणी के लिए जद यू ने भी अपना बयान बहादुर तय कर रखा है. ये हैं संजय सिंह. संजय सिंह प्रवक्ता हैं. सो वह अखबारों में खांसते भी हैं तो नीतीश के इशारों पर. उन्होंने जोर से खांसा. कहा- रघुवंश बाबू सठिया गये हैं. डिरेल हो गये हैं. अखबारों-चैनलों को मसाले मिलने लगे. तीन दिनों तक बयानों के तीर चलते रहे.

नतीजा

नतीजा यह हुआ कि अपराध, फिरौती, हत्या से मीडिया की नजरें बिल्कुल हट गयीं. उसकी सारी नजरें राजद-जद यू के बीच तू-तू, मैं-मैं पर टिक गयीं. खबरों से अपराध गायब. हत्या गायब. जंगल राज पार्ट टू का शोर भी गायब.

उधर पर्दे के भीतर लालू गद-गद. नीतीश गदगद. तीन दिनों तक दोनों खामोश रहे. क्यों? क्योंकि जो मीडिया जंगल राज के शोर से आसमाना को भेदने में लगे थे, वे अब एक ऐसे विवाद की खबरों में उलझ गये, जिसका वजूद था ही नहीं.

क्लारिफिकेशन

भला सोचिये कि लालू नीतीश क्या आपस में भिड़के खुद को तबाह करना चाहेंगे? जब नीतीश कुमार उस राजनीतिक विचारधारा की पार्टी के साथ 17 साल सामंजस्य बिठा सकते हैं जो उनके विचारों से मेल ही नहीं खाता तो क्या वह उस राजद के साथ नहीं निभा पायेंगे जो वैचारिक रूप से उन्हीं के करीब है?

इर्शादुल हक़ नौकरशाही डॉट इन के संपादक हैं 

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सम्पादक

डॉ. लीना