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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लेखन को स्थायित्व और वैधता देती निजी वेबसाइट

डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'/ इंटरनेट की इस दुनिया ने पाठकों की पहुँच और पठन की आदत दोनों ही बदल दी है, इसी के चलते प्रकाशन और लेखकों का नज़रिया भी बदलने लगा है। भारत में लगभग हर अच्छे-बुरे का आंकलन उसके सोशल मीडिया / इंटरनेट पर उपस्थिति के रिपोर्टकार्ड के चश्में से देखकर तय किया जा रहा हैं, संस्था, संस्थान, व्यक्ति, सरकार, कंपनी, साहित्यकर्मी से समाजकर्मी तक और नेता से अभिनेता तक को सोशल मीडिया में उसके वजन, प्रभाव और लोकप्रियता की कसौटी पर तौला जा रहा है। तो साहित्य और हिन्दी का प्रचार भी सोशल मीडिया की कसौटी पर कसकर करना होगा।

साहित्य सृजन के लिए वर्तमान में जब सोशल मीडिया उपयुक्त माध्यम है तब भी रचनाकारों का पुस्तकों की छपाई के प्रति मोड़ना ठीक भी नहीं होता न ही आसान रास्ता है, इसकी बजाय ई -बुक को स्वीकारना होगा। पहले प्रकाशित पुस्तके और अख़बारों में प्रकाशित रचनाएँ पाठक खोजती थी और जोड़ती थी जबकि आज के दौर में यही काम फेसबुक, व्हाट्सअप और ट्वीटर के साथ ब्लॉग और निजी वेब साइट कर रहे हैं। और होना भी यही चाहिए क्योंकि जब हमारे पास सस्ता और पर्यावरण के लाभ के साथ विकल्प मौजूद है तो हम क्यों कर पुराने तरीकों से पर्यावरण को हानी पहुँचाकर भी महँगे माध्यम की ओर जा रहे हैं।

यदि हम इंटरनेट की दुनिया में अपनी निजी वेबसाइट भी ब्लाग जैसी या पुस्तक जैसी बनवाए तो खर्च अमूमन 5 से 6 हज़ार रुपये ही आएगा । जिस पर आप अपनी बहुत सारी किताबों के ई संस्करण भी प्रकाशित कर सकते है । और पुस्तकों के पाठक के साथ-साथ लाखों विश्वस्तरीय पाठकों की पहुँच तक जाया जा सकता हैं।

इन्ही संदर्भों में यदि ब्लॉग को नापा जाए तो वह और बेहतर विकल्प हैं, और फिर सोशल नेटवर्किंग साइट तो है ही रचना के बेहतर प्रचार की। क्योंकि आप एक बात और देखिए क्या विगत दो दशकों में कोई किताब याद है जिसकी 10 लाख प्रतियाँ बिकी हो? परंतु ये ज़रूर बता सकते हैं कि कई सोशल साइट या निजी वेबसाइट हैं जिनके व्यूअर्स एक करोड़ तक पहुँचे हैं।

लाभ का सौदा हैं सोशल मीडिया या इंटरनेट माध्यम से पाठकों तक पहुँचना और किफायती भी हैं। और सबसे अच्छी बात सोशल मीडिया में आपकी यदि रचना चोरी होती है तब आप न्यायिक साहायता भी ले सकते हैं। जबकि हम किताबों के प्रकाशन में धन, और समय दोनो को खर्च करने के बाद सीमित दायरे में ही बँधे रहते हैं। सोशल मीडिया का विकल्प पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभप्रद हैं।

वर्तमान इंटरनेट के इस युग में, लेखकों को इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन का लाभ उठाना चाहिए, और वैश्विक रूप से पाठकों को दिखते रहने तथा अभिगम्य होने के लिए ऑनलाइन प्रोफाइल्स की सृष्टि करनी चाहिए। आज, लेखकों के लिए अपनी ऑनलाइन उपस्थिति के निर्माण के लिए विभिन्न चैनल्स हैं। यदि कोई लेखक या लेखिका चाहता / चाहती है कि उसकी कृति वैश्विक रूप से पढ़ी जाए, तब किसी ऐसे वेबसाइट पर प्रोफाइल बनाना अच्छी बात है, जिसमें लेखकों का पृष्ठ, समीक्षा तथा सोशल मीडिया लिंक्स हों। आज, कोई वेबसाइट चलाने के लिए अपने-आप-कीजिए से लेकर प्रोफेशनल वेब डेवलपिंग सर्विसेज तक, अनेक विकल्प हैं।

साहित्य चोरी से बचने का सहारा भी है निजी वेबसाइट :

इंटरनेट की दुनिया ने हिंदी या कहे प्रत्येक भाषा के साहित्य और लेखन को जनमानस के करीब और उनकी पहुँच में ला दिया है, इससे रचनाकारों की लोकप्रियता में भी अभिवृद्धि हुई है। किन्तु इन्ही सब के बाद उनके सृजन की चोरी भी बहुत बड़ी है। जिन लोगो को लिखना नहीं आता या सस्ती लोकप्रियता के चलते वो लोगो अन्य प्रसिद्द लोगो की रचनाओं को तोड़-मरोड़ कर या फिर कई बार तो सीधे उनका नाम हटा कर खुद के नाम से प्रचारित और प्रकाशित भी करवा लेते है। ऐसी विकट स्थिति में असल चोर द्वारा कई बार इतना प्रचार कर दिया जाता है कि कई बार तो मूल रचनाकर को भी लोगो साहित्य चोर समझ लेते है। साहित्यिक सामग्रियों की चोरी कर अपने प्रकाशित साहित्य या सन्दर्भ में शामिल कर लेना, अखबारों या सोशल मीडिया में अपने नाम से प्रचारित करना,  दूसरे की कविता वे सरेआम मंचों से सुनाना, साझा संग्रहों में स्वयं के नाम से दूसरे की रचनाएं प्रकाशित करवाना आदि साहित्य चोरो का प्रिय शगल बन चुका है।

कानूनन रूप से भी देखा जाये तो साहित्यिक चोरी धोखाधड़ी की श्रेणी  में भी आता है। इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। अगर आप किसी अन्य के रचनात्मक कार्य का उपयोग करते हैं, तो आप को उनके हर स्रोत का श्रेय देना होगा, इसलिए ऑनलाइन या मुद्रित सामग्री के लिए फुटनोट या उद्धरण का उपयोग करें। किसी भी समय आप किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी, रचना, आकर्षित या आविष्कार किए गए किसी भी चीज़ का हिस्सा या किसी का उपयोग करते हैं, तो आपको उन्हें क्रेडिट देना होगा। यदि आप लेखन या विचारों को चोरी करते हैं और उन्हें अपने ही रूप में बंद करते हैं, तो आप पकड़े जा सकते हैं।

इंटरनेट की दुनिया में स्थापित होने हेतु साहित्यकारों को कुछ प्रबंध करना होंगे जैसे –

1. सबसे पहले तो अपनी मौलिक रचनाएँ अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर मय  दिनांक और समय के साथ प्रकाशित करे। ऐसा करने से आपकी रचनाओं के प्रथम प्रकाशन का सन्दर्भ और मौलिकता का साक्ष्य उपलब्ध होगा।

2. सोशल मीडिया में ब्लॉग और वेबसाइट पर प्रकाशन के पूर्व रचनाएं साझा करने से बचें, अन्यथा आप सबुत देने में असमर्थ रहेंगे और साहित्य चोर उस पर खुद की मौलिकता का प्रमाण दर्ज कर लेगा।

3. यदि आपने भी किसी सन्दर्भ का उपयोग किया है तो सन्दर्भ सूचि में उसका उल्लेख जरूर करे, अन्यथा आप पर भी साहित्य चोरी का आरोप लग सकता है।

4. सोशल मीडिया में रचनाओं को हर जगह अपने ब्लॉग की लिंक या जहाँ प्रकाशित हुई है उसी सन्दर्भ के साथ साझा करें, यह चोर की मनोस्थिति पर भी प्रभाव डालेगा।

5. कही भी आपको आपकी रचनाओं की चोरी नजर आये तो तुरंत उसकी शिकायत मय पर्याप्त साक्ष्य के और स्वयं की मौलिक रचना होने के साक्ष्य के  साथ नजदीकी पुलिस थाने में  शिकायत दर्ज करवाएं।

6. अपनी पुस्तकें मय आईएसबीएन (ISBN) के प्रकाशित करवाएं।

 

डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'

पत्रकार एवं स्तंभकार

अणुडाक: arpan455@gmail.com

अंतरताना: www.arpanjain.com

(लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं)

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डॉ. लीना