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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पांचवाँ स्तम्भ !

आज जिधर देखिए केवल तामसी खबरों का ही जोर है
सोना हमेशा सोना ही रहेगा, ये बात अलग है कि उसमें कुछ विजातीय तत्व मिलाने पर वह अशुद्ध हो जाता है, लेकिन फिर भी हम कहेंगे तो उसे सोना ही। आशा की जाना चाहिए कि सोने की अशुद्धि सद प्रयास से जल सकती है और निखालिस सोना बच सकता है। कहने को तो हमारे लोकतंत्र में बहुजन हिताए, बहुजन सुखाए’’ के लिए बाकायदा पांच स्तंभ है आप चौंक गए न? क्योंकि आपने अभी तक केवल चार स्तम्भों के ही नाम सुने होंगे। हकीकत में देखें तो संविधान में केवल तीन ही स्तंभ है- कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायी पालिका लेकिन चौथे स्तम्भ के रूप में प्रेस पालिका/खबर पालिका को मानते आ रहे है। जब मान ही रहे है तो अब पांचवे स्तम्भ के रूप में ‘‘सूचना का अधिकार’’ स्तम्भ का भी उदय हो चुका है। मेरे अनुसार इन्हें पंच परमेश्वर भी कहा जा सकता है। कहते भी हैं कि पंच परमेश्वर में भगवान का वास होता है, वैसे भी मानव का शरीर पंचभूत तत्वों से मिलकर बना होता है। पृथ्वी के अन्य जीवों से यह मात्र बुद्धि को लेकर न केवल भिन्न है बल्कि ईश्वरत्व को प्राप्त करने की क्षमता भी रखता है या यूं कहे ईश्वर भी हो सकता है लेकिन इस मानव में लोभ, मोह, क्रोध, मद एवं माया के विजातीय तत्वों के प्रवेश से बुराईयों की मात्रा घटती-बढती भी रहती है, जिससे ये देवता या शैतान बनते रहते हैं।
 निःसंदेह पूर्व के चारों स्तंभ कही न कही न केवल भयभीत है बल्कि आशांकित भी है। ये बात अलग है कि अब पांचवे स्तम्भ पर भी काली छाया मडराने लगी है। 
 
सबकी खबर लेने वाली प्रेस पालिका/खबर पालिका कहीं न कहीं अपने पवित्र उद्देश्य से भटकती ही नजर आ रही है। विगत् कुछ वर्षों में मीडिया में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिन्ट मीडिया में बढती प्रतिस्पर्धा ने अपने दामन पर ही दाग लगाए है फिर बात चाहे इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जिंदल कम्पनी के मालिक ने ही एक प्रतिष्ठित खबर चैनल का ही ‘‘स्टिंग आपरेशन’’ कर खबर ले मीडिया जगत में सनसनी फैला दी।
 आज खबर पालिका अपने मूल उद्देश्य से भटक बाजारवाद के बियावान जंगल में भटक रही है। खबरों के नाम पर केवल लूट, भ्रष्टाचार, डकैती, बलात्कार, खून-खराबा, नाच-गाना, विज्ञापनों की ही भरमार है। आज आम आदमी जिसे खबर समझ कर पढ़ रहा है वह भी नहीं जानता कि वह पेड न्यूज के रूप में ही एक विज्ञापन है। आज असली-नकली और नकली-असली से भी खरा लगने लगता है, तोल-मोल कर ही ये प्रथम पृष्ठ पर स्थान पाती है।
विज्ञापन की जकड़ में अखबार इस कदर आ गए है कि पूरा का पूरा प्रथम पृष्ठ ही विज्ञापन को ही समर्पित कर दिया जाता हैं। आज विज्ञापनदाता अखबार के लिए भगवान से ही हो गए है। लक्ष्मी, सरस्वती पर भारी पड रही है, यूं तो लक्ष्मी-सरस्वती में हमेशा ठनी ही रहती है। लक्ष्मी की सवारी उल्लू है कहते भी है लक्ष्मी सेवक उल्लू सदृश्य भी हो जाते हैं। ये रात में ज्यादा सक्रिय रहते हैं।
 
आज क्या अखबार, क्या इलेक्ट्रानिक चैनल जिधर भी देखिए केवल तामसी खबरों का ही जोर है। साथ ही बेसिर पैर की बातों पर घण्टों एक ही बेतुके बयान मुद्दे पर कुतुर गूं करना, अपने को ही न्यायापालिकावत व्यवहार करना, फैसला सुनाना, मोलभाव कर खबरों को चलाना कहीं न कहीं इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खडा करता नजर आता है। ऐसा नहीं सब कुछ ऐसा केवल जनता को ही लगता है बल्कि जिम्मेदार प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू भी कुछ ऐसा मत पहले न केवल व्यक्त कर चुके है बल्कि आज भी इलेक्ट्रानिक मीडिया पर नियंत्रण की बात को भी समय-समय पर इसे दोहराते भी रहते हैं।
 विगत् कुछ वर्षों में न्यायपालिका के ही कुछ न्यायामूर्तियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे है जो निःसंदेह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत नही हैं। अब सरकार भी ‘‘न्यायाधीशों की जवाबदेही’’ के लिए शीघ्र बिल ला रही है।
विधायीपालिका को भी यूं ही निरंकुश नहीं छोड़ा जा सकता। यूं तो समय-समय पर न्यायापालिका एवं विधायीपालिका में अक्सर टकराहट के योग राजनीति में आये दिन बनते ही रहते हैं। अन्ना एवं अरविंद केजरीवाल के जन आंदोलनों से निःसंदेह विधायीपालिका के जनप्रतिनिधि भी कुछ मुद्दों पर घिरते नजर आए फिर चाहे वह जनलोकपाल का ही मुद्दा क्यों न हो।
कार्यपालिका के अधिकारियों का विधायीपालिका के सदस्यों की मिली भगत एवं इन पर आए दिन पड़ने वाले छापों में मिलने वाली अकूत सम्पत्ति भ्रष्ट आचरण का जीता-जागता सबूत हैं।
पांचवा प्रभावी नियंत्रणकारी स्तम्भ ‘‘सूचना का अधिकार’’ के प्रभाव से भी कोई भी स्तम्भ अछूता नहीं है। लेकिन अब ये ही अन्यों की आंखों में खटकने लगा है। आम आदमी का चारों स्तम्भ से हिसाब-किताब मांगना किसी को भी रास नहीं आ रहा है। ये बात अलग है कि ये चारों स्तम्भ ‘‘पांचवे स्तम्भ’’ ‘‘सूचना का अधिकार’’ का भरपूर उपयोग करने से भी नही चूक रहे।
 आज अहम जरूरत है लोकतंत्र के पांचों स्तम्भों ‘‘पंच परमेश्वर’’ को एक तल पर आ केवल और केवल लोकतंत्र की मजबूती के लिए निःस्वार्थ भाव से जनता-जनार्दन के लिए ‘‘बहुजन हिताए, बहुजन सुखाए’’ के लिए ही कार्य करें और विजातीय तत्वों से दूर रहे।

लेखिका ‘‘सूचना मंत्र’’ पत्रिका की संपादक है 
मो. 09425677352




 

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सम्पादक

डॉ. लीना