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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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संवेदनाओं के रंगों से उकेरा ‘आ रही सुनामी’

डा. देवाशीष बोस /हिन्दी कविता में डा. राम लखन सिंह यादव की उपस्थिति उस परंपरा को जीवित करने का उपक्रम है जिसमें साहित्य सृजन दुनियावी सफलता-असफलता या महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु नहीं किया जाता। उनकी काव्य भाषा में उपस्थित जीवन की संघटनाओं को देखने पर स्फटिक सदृश्य चमक दिखाई देती है। यह गहरी अनुभूति और अनुभव के सच से ही मुमकिन होती है। उनका काव्य संसार व्यापक, विविधवर्णी तथा बहुआयामी है। कवि का अनुभव संसार अत्यंत व्यापक है। ऐन्द्रिक बोध उनकी कविताओं के बिम्बों को अधिक सुन्दर बनाते हैं।

वरीय न्यायिक अधिकारी डा. राम लखन सिंह यादव रचित कविता संग्रह ‘ आ रही सुनामी ’ में व्यंग्य, दर्द तथा कवि का निहित आक्रोश चित्रित होता है। उनकी घनीभूत संवेदनाओं को उन्होंने अपनी कृति का कलेवर बनाया है। प्रकाशित संग्रह कविताओं के कथ्य और प्रयोजन के बारे में सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। उनकी रचना न तो किसी वाद की प्रतिबद्धता स्वीकार की है और न ही उनका अंधानुकरण किया है। उन्होंने सपाटबयानी की शक्ति को पहचाना है और उसे अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। इन कविताओं में न तो दुरुह और दुर्बोध प्रतीकों का सहारा लिया गया है और न उलझे हुए बिम्बों की सर्जना की गयी है। सीधे सादे शब्दों तथा आम आदमी की समझ में आने वाली सहज भाषा में उन्होंने अपनी बातें कहना श्रेयस्कर समझा। कदाचित् यही कारण है कि उनकी कविताएं सीधे दिल में उतरती चली जाती है और अपेक्षित प्रभाव छोड़ती है।

 सुकवि रामलखन की कविताएं किसी सर्वहारावादी अथवा प्रगतिशीलता की मोहर की मोहताज नहीं है। ये आम और खास दोनों के अंतर्साक्ष्य की परिणति है। मानव अस्मिता की नई-अनूठी पहचान लिए, अपने लिए किसी विमर्श की मांग करने की जगह खुद अपने समय, समाज से बहस करती साफगो कविताएं न केवल सामाजिक रचनात्मकता के वर्तमान परिदृश्य का तेवर बदल डालती है, बल्कि एकदम नई प्रस्तुती शैली की इजाद के साथ आती है डा. राम लखन सिंह यादव की ये कविताएं। जन सरोकार उनके लेखन की उर्जा और समाज को पहचानने की अंर्तदृष्टि भी है। स्थापित मूल्यों के क्षरण और वर्जनाओं ने मानव को विपदाओं के सन्निकट पहुंचा दिया है। उकेरी गयी कविताओं में इसका पदचाप प्रतिध्वनित हो रही है। सारी रचनाओं में जीवन की अनुभूतियां प्रतिबिम्बित है।

‘ आ रही सुनामी ’ अपने समय के सामाजिक जीवन की विस्तृत पड़ताल है। जिसमें वर्जना, विरुपता, अभाव, अवसाद और वर्तमान हलचल का लेखा जोखा है। इन सब के बीच जीवन मूल्यों की तलाश कवि का लक्ष्य है। कवि ने जहां देवता और नवियों की गणित पर सवाल खड़ा किया है वहीं गंगा यमुनी संस्कृति के वाहक बन कर वैश्विक विप्लव का पैरोकारी किया है। ताकि समरस समाज का सृजन हो सके। दूसरी ओर कवि वर्तमान राजनीति को कोसते हुए खुद्दारी के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कवि अपनी चिन्ता से अवगत कराते हुए समय के पटल पर एहसास और सहनषीलता के साथ भूमिका, नजरिया तथा शैली बदलने के लिए लोगों को आन्दोलित करते हैं।

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सम्पादक

डॉ. लीना