एम. अफसर खां सागर / ‘शब्द की हिमशिला अब पिघलने लगी’ अमरनाथ राय की तीसरी कविता संग्रह है। यह संग्रह सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और पारिवारिक समेत अन्य तमाम विद्रुपताओं के सरोकारों को परिलक्षित करता है। वक्त के बदलते मिजाज के साथ सब कुछ रेत की मानिन्द हाथ से फिसल जाता है अगर कुछ बचता है तो सिर्फ कसक। अमरनाथ राय ने जीवन में जो सहा और भोगा है, इन्ही वास्तविक अनुभवों को कविता का रूप दिया है। अपनी व्यथा को मन में समेटे हुए कवि ने समाज के हर पहलू पर सूक्ष्म निगाहों से कलम चलाने का सार्थक प्रयास किया है। कवि ने समाज में लुप्त होते मानवीय मूल्य, जैसे- प्रेम, ममता, माया, शर्म, मोह दया आदि का बारीकी व सूझ-बूझ से वर्णन किया है।
अमरनाथ राय सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है भाषा के अथाह भण्डार से शब्दों को खोजकर लाना और उसे गीत की भाषा बनाना। असंख्य अप्रचलित शब्दों को खोजकर उसे गीत में मोतियों की तरह पिरोने इन्हे महारत हासिल है।
विश्वास अटल फिर संशय क्या, मंजिल दूर रही है फिर भी मत परवाह कर तू,
तुम होगे विश्व के विश्व होगा फिर तुम्हारा, फिर हार कहां, फिर जय कहां?
परम्परा, संस्कृति व मानवीय मूल्यों में आये बदलाव पर कवि का व्यथित मन कहता है-
वो आस्था कहां है? वो देवता कहां है, जहां मैं शीश झुकाउं?
ईश्वर अब पत्थर बनकर देवालय में कैद हो गए?
हालात के साथ मानव खेलता खिलौना से ज्यादा कुछ नहीं, ऐसे में कवि ने अपनी सोच को इन पंक्तियों में उकेरा है-
पीड़ा में मैं तड़पा था, आंख तुम्हारी क्यों भर आयी
सम्बंधों की बात चली तो, तुम मुझसे कुछ दूर हो गये,
मुझे पराया कहने को जैसे तुम मजबूर हो गये।
अपनी अन्तिम कविता में अमरनाथ राय जीवन से बेहतरी की कामना करते हुए लिखते हैं कि-
छोड़ दोगे मुझे तो बिखर जाउंगा, तेरे अंगनों में सज कर सवर जाउंगा,
गीत की पंक्ति हूं सुर हूं संगीत का, अपने कोमल स्वरों में बिठा लो मुझे।
प्रस्तुत ग्रन्थ ‘शब्द की हिमशिला अब पिघलने लगी’ में संकलित कविताएं शब्दों के चयन, शिल्प, बिम्ब-सम्प्रेषण व विषय-चुनाव के आधार पर हिन्दी काव्य यात्रा की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को समेटे हुए है। वाद-विवाद से परे इन भावाभिव्यक्यिों के मूल में भी कविता का मर्म सच्चे स्वरूप में विद्यमान है। कुल मिला कर काव्य संग्रह पठनीय है।
पुस्तक- शब्द की हिमशिला अब पिघलने लगी
कवि- अमरनाथ राय
प्रकाशक- पुस्तक पथ, दिल्ली
मूल्य- 200 रूपये (पेपर बैक संस्करण)
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समीक्षक - चन्दौली (उत्तर प्रदेश) के निवासी एम.अफसर खान सागर समाजशास्त्र में परास्नातक हैं। स्वतंत्र पत्रकार व युवा साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं । पिछले दस सालों से पत्रकारिता में है। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेखन के साथ ही जनहित भारतीय पत्रकार एसोसिएशन के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।