कैलाश दहिया/ युद्धरत आम आदमी’ नामक पत्रिका के जुलाई 2014 अंक में उर्मिला पँवार का साक्षात्कार छपा है। यह साक्षात्कार ‘स्त्री काल’ नामक नेट पत्रिका पर भी देखा जा सकता है। इसमें एक सवाल आजीवक धर्म को लेकर पूछा गया है। जो यहाँ दिया जा रहा है।
सवाल - दलित दर्शन में आजकल धर्म की भूमिका को लेकर बहुत से सवाल उठ रहे है। यहां तक कहा जा रहा है कि बाबा साहब ने एक क्षत्रिय का धर्म अपनाकर बहुत बड़ी भूल की। दलित चिंतक दलित धर्म की खोज ‘आजीवक’ धर्म के रूप में कर रहे हैं तथा इस धर्म की खोज को दलित चिंतन की उपलब्धि बता रहे हैं। आपके मत में दलित धर्म की अवधारणा क्या है? तथा एक दलित स्त्री के रूप में जीवन में ‘धर्म’ की भूमिका को किस रूप में देखती है?
जवाब - धर्म की भूमिका किसी भी स्वस्थ समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के तौर पर नकारात्मक ही रही है। धर्म घीरे-घीरे सम्प्रदायवाद एवं वंशवाद में परिणित होकर कट्टरता को ही फैलाता है। वैज्ञानिक सोच को खत्म करता है। स्त्री के लिए तो वह ओर भी खतरनाक होता है। राज्य के नियमों के साथ धर्म भी स्त्री के आचरण के लिए भेदभाव पूर्ण एक संहिता तैयार कर देता है। इसलिए धर्म वही अच्छा है जो समता, न्याय और बंधुत्त्व का पक्षधर हो और इस दृष्टि के उपयुक्त बौद्ध धर्म के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। बाबा साहब ने बहुत सोच-समझकर धर्मान्तरण किया था और इस विकल्प (बौद्ध धर्म) को अपनाया था। ‘आजीवक’ की बात मुझे समझ नहीं आती; वह दलितों का धर्म नहीं हो सकता।
उर्मिला पँवार के जवाब को ले कर थोड़े में कुछ बताया जा सकता है -
1. पूछना यह है, अगर धर्म की भूमिका नकारात्मक होती है तो बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया ? फिर यह कहने में की ‘बाबा साहब ने .... धर्मातरण किया था ‘ का अर्थ है की बौद्ध धर्म हमारा नहीं।
2. अगर आजीवक धर्म स्त्री के जारिणी होने पर रोक लगाता है तो इसमें गलत क्या है ?
3. क्या दलितों की जरूरत ‘समानता- मानवता’ आदि के नारों की है ? जिन्हे पीटा जा रहा है और जिन की बहू –बेटियों से बलात्कार किए जा रहे हैं वे समता- बंधुत्व की बात करते अच्छे नहीं लगते। ऐसी सोच पर माथा ही पीटा जा सकता है।
4. धर्म अपनी परंपरा से निकलता है। दलितों में यह परंपरा आजीवक की है। आजीवक धर्म में वर्ण –व्यवस्था, पुनर्जन्म और सन्यास का तो विरोध है ही, इस में जारकर्म पर तलाक की व्यवस्था शुरू से ही रही है।
5. धर्म जन्मजात होता है। डॉ अंबेडकर बौद्ध धर्म में गिरने से पहले आजीवक थे। बौद्ध बनते ही उन्होंने आजीवक (दलित ) विषयों पर बोलना बंद कर दिया था। लगे हाथ यह भी बता दिया जाए बाबा साहब ने आजीवक परंपरा में पुनर्विवाह किया था। बाबा साहब के दादा-नाना कबीर के अनुयाइ थे और खुद वे कबीर के पद गुनगुनाया करते थे।
6. दलितों को वह धर्म चाहिए जो उन की बहू –बेटियों को बलात्कार से बचाए। उन की बस्तियों को फूकने से से रक्षा करे। बुद्ध के पास ‘बुद्ध्म शरणम गच्छामि’ के सिवाय क्या है ? ये आजीवक जानती नहीं तो आजीवक पर कैसे बोल रही हैं ? अगर ये बौद्ध हो गई है तो उस पर ही बोलें।
आखिर में, महान आजीवक चिंतक डॉ धर्मवीर ने यूं ही थोड़े गैर-दलितों के दलित विषयों पर लिखने पर रोक लगाई है। इसी का विस्तार है गैर- आजीवकों (ब्राह्मण, बौद्ध , जैन ) के आजीवक पर बोलने पर रोक । तो पहले उर्मिला पँवार आजीवक को जान लें फिर बात करें अन्यथा विद्वानों की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी।
उर्मिला पँवार के साक्षात्कार पर कैलाश दहिया ने उठाया सवाल
Comment
नवीनतम ---
- डबल्यूजेएआई की स्व नियामक इकाई डबल्यूजेएसए का पुनर्गठन, प्रो. संजय द्विवेदी को बनाया गया चेयरमैन
- आंदोलनरत अन्नदाता: उदासीन सरकार, ख़ामोश मीडिया
- आध्यात्मिक फिल्म ‘The Light’ की स्क्रीनिंग
- Movies often show corrupt politicians
- कारोबारी मीडिया ने इस देश को एक हताश लोकतंत्र में बदल दिया
- हमें सुनाई भी दे रहा है, दिखाई भी दे रहा है और आपको अंजना मैम?
- ‘मूक’ समाज को आवाज देकर बन गए उनके ‘नायक’
- संस्कृति और भारतबोध के प्रखर प्रवक्ता हैं सच्चिदानंद जोशीः प्रो. द्विवेदी
- गले या पेशाब की थैली का कैंसर?
- ‘यह सुधार-समझौतों वाली मुझको भाती नहीं ठिठोली’
- गलत सूचना प्रसार रोकने के लिए 'मिथ वर्सेस रियलिटी रजिस्टर' की शुरुआत
- शेफाली शरण ने पीआईबी के पीडीजी का पदभार संभाला
- डब्ल्यूजेएआई का कई स्तरों पर विस्तार
- आम चुनाव 2024 के लिए मीडिया सुविधा पोर्टल शुरू
- मीडिया पंजीकृत, मान्यता प्राप्त या गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं हो सकता: उपराष्ट्रपति
- फैक्ट चेक यूनिट आईटी नियम 2021 के अंतर्गत अधिसूचित
- चुनावी बांड पटाक्षेप और 'ग़ुलाम मीडिया' में पसरा सन्नाटा
- बहुभाषिकता है भारत की शक्ति: प्रो.संजय द्विवेदी
वर्गवार--
- feature (31)
- General (179)
- twitter (1)
- whatsapp (2)
- अपील (8)
- अभियान (9)
- अख़बारों से (3)
- आयोजन (96)
- इंडिया टुडे (3)
- खबर (1629)
- जानकारी (5)
- टिप्पणी (1)
- टीवी (3)
- नई कलम (1)
- निंदा (4)
- पत्रकारिता : एक नज़र में (2)
- पत्रकारों की हो निम्नतम योग्यता ? (6)
- पत्रिका (44)
- पुस्तक समीक्षा (46)
- पुस्तिका (1)
- फेसबुक से (203)
- बहस (13)
- मई दिवस (2)
- मीडिया पुस्तक समीक्षा (20)
- मुद्दा (498)
- लोग (8)
- विरोधस्वरूप पुरस्कार वापसी (6)
- विविध खबरें (570)
- वेकेंसी (14)
- व्यंग्य (30)
- शिकायत (5)
- शिक्षा (10)
- श्रद्धांजलि (118)
- संगीत (1)
- संस्कृति (1)
- संस्मरण (31)
- सम्मान (17)
- साहित्य (100)
- सिनेमा (16)
- हिन्दी (5)
पुरालेख--
- May 2024 (2)
- April 2024 (11)
- March 2024 (12)
- February 2024 (11)
- January 2024 (7)
- December 2023 (7)
- November 2023 (5)
- October 2023 (16)
- September 2023 (14)
- August 2023 (11)
- July 2023 (15)
- June 2023 (12)
- May 2023 (13)
- April 2023 (17)
- March 2023 (21)
टिप्पणी--
-
Anurag yadavJanuary 11, 2024
-
सुरेश जगन्नाथ पाटीलSeptember 16, 2023
-
Dr kishre kumar singhAugust 20, 2023
-
Manjeet SinghJune 23, 2023
-
AnonymousJune 6, 2023
-
AnonymousApril 5, 2023
-
AnonymousMarch 20, 2023
सम्पादक
डॉ. लीना