जनसंचार विमर्श ने किया हिंदी दिवस पर गोष्ठी का आयोजन
इलाहाबाद। शोध पत्रिका जनसंचार विमर्श के प्रधान कार्यालय उत्कर्ष अपार्टमेंट तुलारामबाग में हिंदी दिवस पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर श्रीवास्तव ने कहा कि हिन्दी पत्रकारिता का भविष्य ज्यादा अच्छा होता जा रहा है, क्योंकि जिस तरह से बाजारवाद के चलते ही सही देश-विदेश के लोग बाजार और वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए यहा जनसंख्या को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं उससे हिन्दी भाषा का दिन-प्रतिदिन विस्तार होता जा रहा है। आज विश्व में लगभग 90 करोड़ लोग हिंदी भाषा समझने लगे हैं जबकि 50 करोड़ के आस-पास लोग हिंदी भाषा लिखने और पढ़ने में समर्थ हैं। 24 भाषाओं को मिलाकर पूरे देश में बोली जाने वाली यह हिंदी आज दिन-दिगंतर में अपना प्रभाव फैलाती जा रही है। ऐसे में बस जरुरत है हिंदी को और समृद्धशाली, प्रभाव-प्रधान एवं सहजता एवं सरलता से सुपाठ्य बनाने की। आज हिंदी दिवस पर यह जरुरी हो गया है कि हम सभी अपनी मातृभाषा और सबलता प्रदान करने में अपना-अपना योगदान प्रदान करें।
अन्य वक्ताओं में शेखर प्रकाश अधिवक्ता उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने कहा कि आज यह कहने में कोई संकोच नही है हिंदी पत्रकारिता ने हिंदी को विस्तार दिया है। आज बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल भी हिंदी भाषा में अपने आपको स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। बड़ी संख्या में पूरे देश में हिंदी भाषी खबरिया चैनलों की स्थापना हो रही है। आज सारे देश हिंदी से संबंधित समाचार पत्रों की पाठक संख्या में वृद्धि को सभी मीडिया समूह स्वीकार कर रहे हैं।
सभा को संबोधित करते हुए स्वतंत्र पत्रकार संजय राय ने कहा कि इस बात से कोई नहीं मुंह मोड़ सकता है कि ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव के बाद भी हिंदी पत्रकारिता ने हिंदी भाषा को मजबूती प्रदान की। जिस तरीके टेबलायट अखबारों ने हिंदी को आमजन के पास पहुंचाया है वह हिंदी पत्रकारिता की शक्ति को दर्शाता है।
जनसंचार विमर्श के संपादक संदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि जहां तक भाषा और पत्रकारिता की बात है तो लोगों के पास हिंदी पहुची तो जरुर है लेकिन मेरा मानना है आज की पत्रकारिता में जो एक बात दुखद नजर आती है वह है भाषा से व्याकरण और शब्दावली का विस्थापन रोक पाने में हिंदी पत्रकारिता थोड़ी कमजोर होती दिख रही है। मुझे लगता है कि वैश्वीकरण की आंधी ने हिंदी पत्रकारिता में सिर्फ कारक ही बचता दिख रहा है बाकि व्याकरण और शब्दावली का जाना तय दिख रहा है। हिंदी पत्रकारिता को जरुरत है भाषा को संरक्षित करने की। मुझे लगता है इसके पीछे शिक्षा का निजीकरण ज्यादा जिम्मेदार है। हिंदी अखबार में तो अंगे्रजी लेखकों के अधिकतर अनुवाद छपते हैं? लेकिन क्या किसी अंग्रेजी अखबार ने कभी किसी हिंदी लेखक का अंग्रेजी अनुवाद अपने समाचार पत्र में छापा है। उत्तर शायद आपको ना में मिलेगा। इस बात पर हम सभी देश वासियों को चिंतन मनन करने की जरुरत है।
कार्यक्रम का संचालन वान्या श्रीवास्तव ने किया तथा अतिथियों का स्वागत प्रखर चित्रांशी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन पत्रकारिता एवं जनसंचार की शोधार्थी साधना ने किया।