‘दलित दस्तक’ नवम्बर की कवर स्टोरी है- बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की पत्रकारिता यानी ‘मूकनायक’
संजय कुमार / 31 जनवरी 2020 को बहुजन समाज अपने मसीहा बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर द्वारा प्रकाशित ‘मूकनायक’ समाचार पत्र की 100वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. जनवरी 1920 में बाबा साहब ने ‘मूकनायक’ समाचार पत्र से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी. बाबा साहब ऐसे दलित बहुजन नेता- चिंतक- लेखक- पत्रकार थे जिन्होंने समाचार पत्र को अपने आंदोलन का एक जरिया बनाया था. बहुतजनों की आवाज को जोरदार ढंग से उठाने के लिए उन्होंने ‘मूकनायक’ की शुरुआत की थी.
उस दौर में समाचार पत्र थे ऐसे में सवाल उठता है कि बाबा साहब को अखबार क्यों निकालनी पड़ी? जाहिर है कि उस दौर में बाबा साहब वंचित वर्ग के प्रति बहुत चिंतित थे. उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होने से आहत थे. और वंचित वर्ग के हक के लिये गाँधी जी सहित उस दौर के तमाम बड़े नेताओं से टकराते रहे. सवाल जाति को लेकर हो या फिर बहुजनों के हित का, उनके के साथ अमानवीय व्यवहार होते देख बाबा साहब ने अपने लोगों को गोलबंद करने की कोशिश शुरू की. इसके लिए अपनी बात पहुंचाने के लिए पत्रकारिता का सहारा लिया. बाबा साहब के तेवर ने सब को हिला कर रख दिया था यहाँ तक कि ‘मूकनायक’ के प्रकाशन को लेकर जब आंबेडकर ने तिलक के समाचारपत्र केसरी में विज्ञापन दिया तो राशि लेकर भी विज्ञापन छापने से इंकार कर दिया गया था। ‘मूकनायक’ समाचार पत्र की 100वीं वर्षगांठ के मद्देनजर नई दिल्ली से आठ वर्षों से प्रकाशित मासिक ‘दलित दस्तक’ पत्रिका ने नवम्बर 2019 का अंक का कवर स्टोरी बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की पत्रकारिता यानी ‘मूकनायक’ को बनाया है.
‘बाबा साहब आम्बेडकर की पत्रकारिता’ कवर आलेख को डॉ विवेक कुमार ने लिखा है. आलेख में जिक्र वे करते है कि बहुजन आंदोलन में मीडिया की आवश्यकता पर जोर देते हुए बाबा साहब ने अपनी राजनीतिक पार्टी की राज्य इकाइयों को भी अपना पत्र निकालने के लिए प्रोत्साहित किया. जैसे उन्होंने 1945 में शिड्यूल कास्ट फेडरेशन की कोलकाता इकाई के मुखपत्र ‘पीपुल्स हेरल्ड’ अंग्रेजी पाक्षिक का उद्घाटन करते हुए समाचार की परिभाषा एवं भूमिका पर कुछ इस तरह टिप्पणी की. उनका मत था कि आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था में समाचार पत्र एक अच्छी सरकार का मुख्य आधार है.
बाबा साहब आंबेडकर की पत्रकारिता, आलेख में कैसे बाबा साहब ने पत्रकारिता की शुरुआत की, विस्तार से चित्रण किया गया है. उनके संघर्ष को रेखांकित किया गया है. आलेख से साफ पता चलता है कि बाबा साहब ने उस दौर में पत्रकारिता के लिए जो भी कहा था आज के समाज में मीडिया की भूमिका को देखने पर साफ लगता है जैसे बाबा साहब डॉक्टर आंबेडकर आज की पत्रकारिता के बारे में बात कर रहे हों. उस दौर में बाबा साहब ने भारतीय पत्रकारिता की अवधारणा की व्याख्या की थी. उपरोक्त लेख गांधी, जिन्ना, रानाडे में वे लिखते हैं कि भारत में कभी पत्रकारिता व्यवसाय था. आजकल यह व्यापार/उद्योग बन गया है. इसके पास साबुन बनाने से ज्यादा कोई नैतिक भूमिका नहीं बची है.
बाबा साहब द्वारा भारतीय मीडिया/ पत्रकारिता की उपरोक्त व्याख्या आज भी सटीक एवं वस्तुनिष्ठ बैठती है. बाबा साहब अंबेडकर ने 36 वर्षों तक पत्रकारिता भी की थी. इस दौरान उन्होंने पांच समाचार पत्र का प्रकाशन किया. इनमें 1920 में मूकनायक, 1927 में बहिष्कृत भारत, 1928 में समता,1930 में जनता और 1956 में प्रबुद्ध भारत शामिल है. ये सभी समाचार पत्र अपने दौर के चर्चित पत्रों में से रहे.
‘डॉ. आम्बेडकर की पत्रकारिता और मूकनायक के संपादकीय’ आलेख में पत्रकार कृपाशंकर चौबे ने लिखा है कि बाबा साहब अंबेडकर का मानना था कि दलितों को जागरूक बनाने और इन्हें उन्हें संगठित करने के लिए उनका अपना स्वयं का मीडिया अति आवश्यक है इसी उद्देश्य प्राप्ति के लिए उन्होंने 31 जनवरी 1920 को मराठी पाक्षिक ‘मूकनायक’ शुरू की. संपादकीय में डॉक्टर आम्बेडकर ने इसके प्रकाशन के औचित्य के बारे में लिखा था,बहिष्कृत लोगों पर हो रहे और भविष्य में होने वाले अन्याय के उपाय सोच कर उनकी भावी उन्नति व उनके मार्ग के सच्चे स्वरूप की चर्चा करने के लिए वर्तमान पत्रों में जगह नहीं है. अधिसंख्य समाचार पत्र विशिष्ट जातियों के लिए साधने करने वाले हैं. कभी-कभी उनका आलाप इतर जातियों के अहितकारक होता है’. इसी संपादकीय टिप्पणी में बाबा साहब लिखते हैं, ‘हिंदू समाज एक मीनार है. एक एक जाति इस मीनार का एक एक एक तल है और एक से दूसरे तल में जाने का कोई मार्ग नहीं है. जो जिस तल में जन्म देता है, उसी तल में मरता है.
मूकनायक के संपादकीय टिप्पणी की चर्चा लेखक ने की है. जो जाति- समाज को आईना दिखाता मिलता हैं. डॉ आंबेडकर की पत्रकारिता और मूकनायक के संपादकीय काफी चौंकाने वाले हैं. इस आलेख में लेखक बताते हैं कि मूकनायक की आरंभिक दर्जनभर संपादकीय टिप्पणियां डॉ.आंबेडकर ने स्वयं लिखी थी. संपादकीय टिप्पणियों को मिलाकर बाबा साहब की कुल 40 लेख मूकनायक में छपे जिनमें मुख्यत जातिगत गैर बराबरी के खिलाफ आवाज बुलंद की गई थी.
दलित दस्तक के नवंबर अंक में कवर स्टोरी के अलावे भेदभाव ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के निशाने पर क्यों है बहुजन छात्र’,
‘झाबुआ के आदिवासी बच्चों ने थामा कैमरा’, ‘एससी-एसटी-ओबीसी उम्मीदवारों का कट ऑफ सामान्य वर्ग से ज्यादा क्यों है’, ‘बॉलीवुड और कैंपस फिल्में’, ‘बाबा साहब के आरक्षण की पहली रिटायर्ड पीढ़ी’, ‘आदिवासी समाज के प्रेरणास्रोत नायक’, ‘रविदास मंदिर पर केंद्र की नजर’’ चर्चित पत्रकार उर्मिलेश की टिप्पणी ‘इतिहास की पुनर्पाठ में इन ऐतिहासिक तथ्यों को कैसे छुपाएगी बीजेपी?, संविधान सभा में डॉ. आम्बेडकर को नहीं चाहते थे नेहरू’, ‘एक दलित को विभाग अध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय’, ‘भारत छोड़ो आंदोलन कुचलने में अंग्रेजों का साथ देने वाले सावरकर को भारत रत्न’ आदि आलेख भी पठनीय है. कुल मिला कर अंक बेहतर है खास कर ‘मूकनायक’ पर जो भी सामग्री है बाबा साहब का सन्देश देता है. हालाँकि पूरा अंक ‘मूकनायक’ पर होता तो और बेहतर होता.
पत्रिका- दलित दस्तक
संपादक- अशोक दास
अंक- नवंबर 2019
मूल्य- ₹35
संपर्क- डी 23 पहली मंजिल, पांडव नगर ,नई दिल्ली 110092