मीडिया स्वतंत्रता- लिंग, संस्कृति और राजनीति पर राष्ट्रीय कार्यशाला
साकिब जिया/ पटना। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और भेदभाव जैसे मुद्दे पर समाज के लोगों को अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा और इसमें मीडिया की भूमिका अहम हो सकती है। यह बात आक्सफैम इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवींद कुमार प्रवीण ने आज साउथ एसियान वुमेन इन मीडिया स्वाम बिहार चैप्टर और ऑक्सफैम की ओर से मीडिया स्वतन्त्रता- जेंडर, कल्चर और पॉलिटिक्स विषय पर ए.एन. सिन्हा अध्ययन संस्थान में आयोजित दो दिवसीय मीडिया कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही।
आज पहले दिन कार्यशाला को संबोधित करते हुए स्वाम, बिहार की अध्यक्ष निवेदिता झा ने कहा कि मीडिया जनसरोकार और सामाजिक जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकती है।
इस मौके पर आनंदो बाजार पत्रिका की चीफ रिपोर्टर स्वाति भट्टाचार्जी ने कहा कि महिलाएं खुद पर शर्त थोपना छोड़ दें, साथ ही मीडिया अपनी कार्य सस्कृति में बदलाव करें तभी मीडिया से और अधिक महिलाएं जुड़ पायेंगी।
वहीं प्रभात खबर के कारपोरेटर एडिटर राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आज मीडिया विश्सनीयता के संकट से जूझ रहा है और पत्र सिर्फ सूचनाएं भर दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में जहां सही बात कहने की आजादी नहीं, वहां जेंडर इक्वलीटी कहां से आयेगी?
मीडिया स्वतंत्रता और इसके खतरों पर बात करते हुए दैनिक हिन्दुस्तान, पटना के संपादक तीर विजय सिंह ने कहा कि मीडिया ईमानदारी से अपना काम करें तो उसे कोई खतरा नहीं है। इसी मुद्दे पर एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने कहा कि आज मीडिया ने लोगों को पहले से ज्यादा आवाज दी है। इसमें सोशल मीडिया की भूमिका अहम है।
मीडिया के खतरों पर वरिष्ठ पत्रकार नसीरूद्दीन हैदर खान और बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार जहांगीर माजिद ने भी अपनी बात रखी। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार गीताश्री ने बताया कि दुनिया भर में लगातार पत्रकार मारे जा रहे हैं।
महिलाओं के विरूद्ध हिंसा और मीडिया की भूमिका पर मीडियामोरचा की संपादक लीना ने कहा कि जहां महिलाओं से जुड़ी छोटी खबरों को प्रिंट और इलैक्टोनिक मीडिया जगह नहीं दे पाता है वहां वेबसाइट की भूमिका अहम हो सकती है और वेबपत्रकारिता के माध्यम से इन मुद्दों को दुनिया के किसी कोने में तुरंत और प्रमुखता से पहुंचाया जा सकता है। मीडिया शिक्षिका मिनती चकलानवीस ने महिलाओं के विरूद्ध हिंसा को परिभाषित करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक प्रताड़ना भी शामिल है।
थम्बप्रिंट की पत्रकार अनंदिता और संपादक टेरेसा रहमान ने भी इस मुद्दे पर अपना विचार रखे। जबकि कशमीर की पत्रकार रजिया नूर ने मीडिया में कश्मीरी महिला पत्रकारों की स्थिति को विस्तार से रखा।