योग्यता तय करने को तीन सदस्यीय समिति गठित
शरद (साई)। देश में मीडिया को वास्तव में मीडिया बनाने के खिलाफ प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने कुछ कदम उठाए हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर काटजू के इस कदम का विरोध होना आरंभ हो गया है। काटजू ने उचित योग्यता के अभाव की वजह से देश में खबरों की गुणवत्ता प्रभावित होने की बात कहते हुए भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मार्कण्डेय काटजू ने पत्रकार बनने के लिए जरूरी न्यूनतम योग्यता की सिफारिश करने के लिए एक समिति गठित की है।
पीसीआई के सदस्य श्रवण गर्ग और राजीव सबादे के अलावा पुणे विश्वविद्यालय के संचार एवं पत्रकारिता विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उज्ज्वला बर्वे को समिति में शामिल किया गया है। पीसीआई अध्यक्ष ने यहां जारी एक बयान में कहा कि पिछले कुछ समय से यह महसूस किया जा रहा था कि पत्रकारिता के पेशे में आने के लिए कुछ न्यूनतम योग्यता तय होनी चाहिए।
काटजू ने कहा, वकालत के पेशे में एलएलबी की डिग्री के साथ बार काउंसिल में पंजीकरण जरूरी होता है। इसी तरह मेडिकल पेशे में एमबीबीएस होना जरूरी योग्यता है और साथ में मेडिकल काउंसिल में पंजीकरण भी कराना होता है। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि शिक्षक बनने के लिए भी शैक्षणिक प्रशिक्षण प्रमाण पत्र या डिग्री जरूरी होती है। बाकी पेशे में भी कुछ ऐसा ही होता है, लेकिन पत्रकारिता के पेशे में प्रवेश के लिए कोई योग्यता तय नहीं है।
प्रेस काउंसिल आफ इंडिया ने तय किया है कि पत्रकार होने के लिए योग्यता सीमा निर्धारित होगी। योग्यता तय करने के लिए तीन सदस्यीय एक कमेटी बनाई गई है।
बहुत ही योग्य, गुणी, अनुभवी और प्रिंट मीडिया में सभी स्तरों पे स्वीकृत श्रवण गर्ग का इस कमेटी में होना बहुत बुद्धिमत्ता का फैसला है। लेकिन राजीव सबादे और पुणे में विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग की प्रोफ़ेसर डा उज्ज्वला का चयन किसी हद तक विचारणीय है। इस अर्थ में कि खुद मॉस काम के प्राध्यापकों को टीवी विधा की बहुत अच्छी तकनीकी जानकारी होती नहीं है। मॉस काम कर के आए बच्चों को टीवी में प्रारंभिक स्तर से सब समझाना पड़ता है। ऐसे में बेहतर होता कि श्रवण गर्ग की ही तरह टीवी विधा से भी किसी अनुभवी पत्रकार को कमेटी में शामिल किया जाता। किसी ऐसे को जो न सिर्फ बुद्धि ज्ञान बल्कि भाषा के स्तर पर भी कुछ न्यूनतम मानदंड तय करने में मदद दे सके।
इसके विरोध में यह दलील दी जा रही है कि सबसे पहले चुनाव लड़ने के लिए विधायक और सांसदों की आचार संहित का पुर्न अवलोकन होना चाहिए। अपराधी को चुनाव लड़ने से रोकने, लंबे समय से चल रहे या घिसट रहे मामलों में आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकने और चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का निर्धारिण पहले किया जाना चाहिए।
बहरहाल, उम्मीद करनी चाहिए कि भारतीय पत्रकारिता में भी दक्षता के आधार चयन होने शुरू होंगे। किसी खेल विशेषज्ञ से अब किसी अदालती कारवाई पे बोला, लिखा देखने को नहीं मिलेगा। दसवीं फेल पत्रकारों के शायद अखबार नहीं होंगे और उस तरह की पत्रकारिता से ब्लैकमेलिंग के धंधे भी अवरुद्ध होंगे। ज़ाहिर है, लोग पढ़ लिख के आएंगे मीडिया में तो उनके वेतनमान बेहतर होंगे और किसी एक्सपर्ट की जगह जब ले कोई एक्सपर्ट ही सकेगा तो सेवा की सुरक्षा भी।