Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु पत्रकारों की गोष्ठी आयोजित

नई दिल्ली। भारत को आजाद हुए 70 साल हो गये पर आज तक राष्ट्र की कोई भाषा नहीं बन सकी। इसी संदर्भ में हिन्दी वेलफेयर ट्रष्ट, मुम्बई की ओर से हिन्दी को राष्ट्रभाषा दर्जा दिलाने के लिए भारतीय पत्रकारों का एक अभियान समस्त भारत में चलाया जा रहा है। इस कड़ी में मुम्बई, कोलकाता, भोपाल, लखनऊ, नागपुर जलगांव, गौवहाटी, चैन्नई, मंगलूरु आदि के साथ दिल्ली में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सहयोग से पत्रकारों का हिन्दी भवन, नई दिल्ली में एक परिचर्चा सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें डा.वेद प्रकाश वैदिक, प्रो. रवि शर्मा, विजय जैन, न्यायविद पन्ना लाल जैन, गोविंद ब्यास आदी ने परिचर्चा को संबोधित किया।

अपने संबोधन में डा. वैदिक ने कहा कि आज हिन्दी के करोड़ो बोलने वाले है पर नेताओं द्वारा उपेक्षा के कारण इसे राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सका। वही महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि दृढ़ ईच्छा शक्ति की कमी है जब तक ईच्छा शक्ति नही होगी तब तक इसे राष्ट्रभाषा नही बनाया जा सकता है। उन्होने तुर्की की कहानी भी बताई । न्याविद पन्ना लाल जैन ने संवैधानिक स्थिति के तहत कहा कि इसे हर राज्य के विधान सभा से पारित होने के वाद ही इसे राष्ट्रभाषा बनाया जा सकता है । वही हिन्दी वेल फेयर ट्रस्ट के संचालक एंव आयोजक विजय जैन ने कहा कि हम देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसका अलख जगाना चाहते है पत्रकारों के माध्यम से ताकि  जन –जन में ये वात पहूंचे की देश की राष्ट्र की एक भाषा होनी चाहिये फिर उसे संसद तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि 10 जनवरी 2017 को विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर मुम्बई से दिल्ली तक एक रेल द्वारा जन जागरण यात्रा निकाला जायेगा ।

इस अवसर पर हिन्दी के  विभिन्न पत्रकारों एंव हिन्दी सेवियों उनमें विनय कंसल, जगदीश शर्मा,चन्द्र मोहन आदी।को गोविंद ब्यास विजय जैन एवं महेश चंद्र शर्मा द्वारा शाल ओढ़ाकर एंव प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर लाल बिहारी लाल सहित कई पत्रकार एवं साहित्यकार भी मौजूद थे।

Go Back



Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना