बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर
संजय कुमार/भारतीय मीडिया का द्विज चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है। संविधान निर्माता बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेदकर के महापरिनिर्वाण दिवस 06 दिसम्बर की खबरों को पहले पृष्ठ पर एक कालम तक की जगह नहीं दी गयी। राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों ने बाबा साहेब को प्रथम पृष्ठ पर जगह न अपने चरित्र पर लगे दाग को उजागर कर दिया है। भारतीय मीडिया पर दलितों-वंचितों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाता रहा है।
भारत सरकार ने बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर देश के तमाम अखबारों के 06 दिसम्बर2015 के अंक के लिये पूरे पृष्ठ का विज्ञापन जारी किया था। तमाम अखबारों ने इस विज्ञापन को छापकर मुनाफा बटोरा। लेकिन, बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस की खबर को उतनी अहमियत नहीं दी गयी जितनी मिलनी चाहिए थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में बाबा साहेब की स्मृति पर दस और एक सौ पच्चीस रूपये के स्मारक सिक्के जारी किये थे, यह खबर भी प्रमुखता से खबर नहीं बनी और न ही तस्वीर को मुख्य पृष्ठ पर छापने की जहमत अखबारों ने उठाया। हालांकि बिहार से प्रकाशित एक मात्र दैनिक आज ने फोटो छापा। राष्ट्रीय पत्रों में यह लगभग नदारत रहा। बिहार से प्रकशित तमाम दैनिक पत्रों ने अपने मुख्य पृष्ठ पर बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस की खबर को एक कालम तक नहीं दिया। दैनिक हिन्दुस्तान ने दूसरे पृष्ठ पर एक चित्र छापा। पेज नम्बर आठ पर खबर प्रकाशित की। दैनिक हिन्दुस्तान ने बाबा साहेब की राष्ट्रीय खबर को देश-विदेश पेज इक्कीस पर तीन कालम में प्रकाशित किया। वहीं, दैनिक भाष्कर ने भी पहले पृष्ठ पर बाबा साहेब की न तस्वीर छापी न खबर। पृष्ठ चार एवं पृष्ठ सात पर उन्हें जगह दी। जबकि राष्ट्रीय खबर को पृष्ठ संख्या सत्रह पर फोटो के साथ छापी गयी, लेकिन खबर में बाबा साहेब नजर नहीं आये। यही हाल दैनिक जागरण का रहा। दैनिक जागरण ने दूसरे नम्बर पेज पर दो कालम में तस्वीर के साथ जगह दी। जबकि राष्ट्रीय खबर को पेज नम्बर बारह पर चार कालम में जगह मिली। यहां भी बाबा साहेब की कोई तस्वीर नहीं छापी गयी। आज अखबार ने भी दूसरे नम्बर पर तस्वीर के साथ राजधानी पटना में बाबा साहेब से जुड़ी कई खबरों को जगह दी। साथ ही पृष्ठ संख्या नौ पर सिक्का जारी करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा पुष्प अर्पित करते हुए तस्वीर के साथ खबर प्रकाशित किया। राष्ट्रीय सहारा ने भी दूसरे पेज पर फोटो के साथ बाबा साहेब की फोटो छापी। राष्ट्रीय खबरों को तस्वीर के साथ पृष्ठ संख्या तेरह पर जगह मिली।
प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या दस पर फोटो के साथ जगह दी गयी। राष्ट्रीय खबर में देश-विदेश पेज संख्या बीस पर जगह मिली। अंग्रेजी अखबर टाईम्स आफ इंडिया ने भी पहले पृष्ठ पर बाबा साहेब कीई खबर नहीं छापी। पृष्ठ संख्या सात पर प्रधानमंत्री की खबर फोटो के साथ छापी। हिन्दुस्तान टाईम्स एकमात्र अंग्रेजी अखबार रहा जो बाबा साहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर प्रधानमंत्री की तस्वीर को जगह दी। स्थानीय खबर को पृष्ठ संख्या तीन पर जगह दी गयी।
दिल्ली से प्रकाशित अखबरों का हाल भी बुरा रहा। नवभारत टाइम्स ने प्रथम पेज पर संसद परिसर में बाबा साहेब के महापरिनिवार्ण दिवस मनाने आये प्रधानमंत्री मोदी और अन्य की तस्वरीर छापी। खबर के नाम पर छोटा सा बाक्स न्यूज दिया गया। दैनिक हिन्दुस्तान हो या दैनिक जागरण या अन्य पत्र अमूमन सभी ने प्रथम पेज पर जगह नहीं दी। मीडिया के रवैये से आहत सम्यक भारत के संपादक के पी मौर्य ने फेसबुक पर अपना विरोध जताया है। वे लिखते हैं कि डीएवीपी द्वारा 6 दिसम्बर बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर दो दिन पूरे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन लगभग सभी दैनिक समाचार पत्रों को जारी किया, जिनमें से एक भी समाचार पत्र दलित व्यक्ति द्वारा संचालित नहीं हैं। लेकिन 7 दिसंबर के जनसत्ता समाचार पत्र को देखा हैरान रह गया बाबा साहेब डा.अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित मुख्य समारोह जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्री शामिल थे और ऐसा ही एक समारोह प्रधानमंत्री निवास पर बाबा साहेब डा.अम्बेडकर स्मारक सिक्का जारी करने का भव्य समारोह, विज्ञान भवन में श्रम मंत्रालय द्वारा आयोजित समारोह में से किसी एक को भी प्रमुखता से रंगीन चित्र के साथ समाचार प्रकाशित नहीं किया।
यह पहला मौका नहीं है। अकसर देखा जाता है कि दलितों-वंचितों के नायक-महानायकों को मीडया तरजीह नहीं देता है। पूण्य तिथि हो या जयंती संपादकीय पृष्ठ की बात दूर पहले पेज पर खबर नहीं दी जाती है। दी भी जाती है तो अंदर के पेज पर बिना प्रमुखता से लगा दिया जाता है। सवाल उठता है कि संविधान निर्माता और दलित-वंचितों की आवाज बाबा साहेब क्या प्रथम पृष्ठ के लायक नहीं है? या फिर जान बूझ कर मीडिया ने उन्हें अंदर के पृष्ठों में जगह दी? जहां स्थानीय पत्रों ने बाबा साहेब की तस्वीर छापी वहीं राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने राजनेताओं को जगह दी। दलितों के मसीहा के साथ यह भेदभाव कहीं मीडिया के बाजारवाद या फिर उनकी सोच के देन तो नहीं? कहने के लिए बाबा साहेब को मीडिया में जगह मिली लेकिन प्रमुखता से नहीं।