लोगो के दिमाग को नियंत्रित कर रहा है
गिरीश मालवीय/ पिछले दो दिनों से किसान आंदोलन के प्रति आम जनता का नजरिया बदलता हुआ देख कर अमरीकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मैल्कम एक्स की इस उक्ति पर विश्वास और दृढ़ हो गया है जो उन्ह…
लोगो के दिमाग को नियंत्रित कर रहा है
गिरीश मालवीय/ पिछले दो दिनों से किसान आंदोलन के प्रति आम जनता का नजरिया बदलता हुआ देख कर अमरीकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मैल्कम एक्स की इस उक्ति पर विश्वास और दृढ़ हो गया है जो उन्ह…
राजकुमार सोनी/ देश के चंद मीडिया संस्थानों को छोड़कर अधिकांश की स्थिति सूअरों के जीवन से भी ज्यादा खराब हो गई हैं. कल दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान मीडिया का जो कव्हरेज सामने आया वह यह बताने के लिए काफी हैं कि मीडिया किस बुरी तरह से अंधभक्ति में लीन होकर आवाम के साथ गद्दारी…
मनोज कुमार झा। पहले समाचार-पत्रों में उप सम्पादक बन जाना बहुत बड़ी बात होती थी। उप सम्पादक को अख़बार का 'बैक बोन' माना जाता था। चीफ़ सब एडिटर के ग़ज़ब के जलवे होते थे। समाचार सम्पादक होना तो बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी और उसके अधिकार भी बहुत होते थे। फिर डिप्टी एडिटर और असिस्टेंट एडि…
त्रिभुवन / पत्रकारिता दरअसल पत्रकारों के लिए पेशा या प्रफेशन भर नहीं है। वह उनकी/ हमारी मातृभूमि है। पत्रकारिता के शिक्षा केंद्रों और शिक्षकों की कोई उपयोगिता या ज़रूरत नहीं है, अगर वे एक बेहतरीन लोकतांत्रिक समाज को मज़बूत बनाने वाली पत्रकारिता के लिए नए लोगों को तैयार नहीं करें।…
संजीव चंदन। यह मूक नायक का 100वां साल है। इस साल किसानों द्वारा अखबार प्रकाशन का क्रांतिकारी काम बाबा साहेब को एक ट्रिब्यूट है। …
त्रिपुरा में यह अखबार मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार के कृषि मंत्री और कुछ अन्य पार्टी नेताओं द्वारा किए गए 150 करोड़ रुपये के घोटाले की रिपोर्ट की श्रृंखला प्रकाशित कर रहा था…
जब जब पत्रकारिता के मापदंडों की अवहेलना की जाएगी, न जाने कितने अर्बन गोस्वामी जेल में डाले जाएंगे
रमेश कुमार रिपु/…
दूरदर्शन समाचार कैजुअल वर्कर्स एसोसिएशन ने दूरदर्शन पटना और प्रसार भारती के वरिष्ठ पदाधिकारीयों को भेजी चिट्ठी …
उर्मिलेश। जिन 'खबरिया चैनलों' को मीडिया कहकर आप मीडिया को कोसते हैं, वो मीडिया नहीं है भाई!
इसे मीडिया कहना बंद कीजिए! यह सत्ता और और कुछ 'शक्तिशाली निहित…
मनोज कुमार झा। लोग कहते हैं सुशांत सिंह राजपूत को चरस गांजा शराब और तमाम तरह के नशे का व्यसन था जो विश्व की सभी फिल्मी दुनिया में आम है। वे कथित बाई पोलर डिसाडर से भी ग्रस्त थे। कई महिलाओ के साथ लिवइन में रहा जैसे अंकिता लोखंडे, कीर्ति सोनन, सारा, रिया आदि, कई महिलाओं से…
गिरीश मालवीय। WHO ओर मीडिया का गठजोड़ किस कदर कोरोना का ख़ौफ़ बनाए रखना चाहता है इसका एक और उदाहरण देता हूँ.........
आपको याद होगा मार्च के…
राजेश चंद्रा। ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर है, सरकार कोरोना और अपराधियों के सामने लाचार और अक्षम साबित हो चुकी है, तब इंडियन एक्सप्रेस ने आज यह फेक न्यूज़ छापा है और इसे एडवर्टोरियल नाम दिया है! …
21 मार्च को 50 नए मामले थे, 25 जुलाई को 50,000 नए मामले। एक ही अखबार की रिपोर्टिंग।
बीमारी बढ़ गयी, खबर सिकुड़ गयी।
सीटू तिवारी के फेसबुक वाल से…
अरुण आजीवक/ एक रिसर्च स्कालर हैं प्रदीप कुमार गौतम। ये रिसर्च नहीं बल्कि भाषणबाजी करते हैं। भाषणबाज बनने का दंभ भरते हैं। यू ट्यूब पर अपलोडेड अपने एक भाषण का इन्होंने कैलाश दहिया जी के दिनांक 28 जून, 2020 की एक फेसबुक पोस्ट 'कुसुम वियोगी और कबीर कात्यायन में क्या अन्तर है?' पर टिप…
सुनील पांडेय / वरिष्ठ पत्रकार राज रतन कमल नहीं रहे। शुक्रवार देर रात निधन हो गया। आज सुबह से ही FB पर उनके लिए संवेदना व्यक्त की जा रही है। मैं भी इस दुःख की घड़ी में उनके परिवार के साथ खड़ा हूँ। लेकिन मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है कि पटना में मौजूद उनके साथ काम कर चुके, उन्हें निजी…
राजकुमार सोनी/ आज से डेढ़ साल पहले जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थीं तब मेरा तबादला कोयम्बटूर ( तमिलनाडु ) कर दिया गया था. यहां कुछ दिन मैंने संपादकीय प्रभारी के तौर पर काम किया, लेकिन ठीक विधानसभा चुनाव के पहले जयपुर में पदस्थ एक वरिष्ठ संपादक ने मुझसे फोन पर कहा कि मैंने चा…
अम्बरीश कुमार। लॉक डाउन के कुछ ही दिन बाद एक पोस्ट लिखी कि प्रिंट मीडिया के बहुत खराब दिन आ गए हैं ।कई संस्करण बंद हो चुके हैं ।वेतन आधा रह गया है बहुत अखबारों में । स्टाफ कम किया जा चुका है ।पत्रकार संगठन अब बोलते नही सरकार की कैसे तारीफ की जाए इसमें जुटे हैं ।वेज बोर्ड नि…
ये समाचार नहीं बताते सीधा मतलब समझा देते हैं
सरस्वती रमेश/ आपने कभी बारूद के ढेर पर बैठकर न्यूज रीडिंग करते हुए न्यूज़ रीडरों को देखा है! अगर नहीं, तो रिपब्लिक भारत चैनल देखिए। उसके न्यूज़ रीडरों के स…
साकिब खान/ हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बधाई नहीं अपनी संवेदना जतायें। दोस्तों हिंदी की पत्रकारिता अपने सबसे मुश्किल दिनों में है। …
कुमार निशांत/ मैं सोशल मीडिया पर आज देख रहा हूं कि हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकार एक दूसरे को बधाइयां दे रहे हैं. लेकिन, अभी यह समय बधाई हो का नहीं है. अभी पत्रकारिता बहुत ही भयावह स्थिति में गुजर रही है. जो लोग अखबार में या इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया में बने हुए हैं वह कितने दिन…
डॉ. लीना