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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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Blog posts : "पत्रिका पुस्तक समीक्षा लोग सम्‍मान साहित्य "

खबरों का घोटाला !

कृष्णेन्द्र राय//

खबर है दिलचस्प ।

खबरों का घोटाला ।।

नजर लगी है तेज ।

                               लगाओ टीका काला ।।

खबर है पधारी …

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मामाजी माणिकचंद: एक ध्येय समर्पित पत्रकार

डॉ. पवन सिंह मलिक/ भारतीय पत्रकारिता में मूल्यों को स्थापित करने में अनेक नामों की एक लंबी श्रृखंला हमको दिखाई देती है। लेकिन उन मूल्यों को अपने जीवन का ध्येय बना पूरा जीवन उसके लिए समर्पित कर देना और उसी ध्येय की पूर्ति के लिए जीवन भर कलम चलाना, ऐसा कोई नाम है तो वो है ‘मा…

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हिन्दी पत्रकारिता के ‘माणिक’ मामाजी

प्रखर संपादक माणिकचंद्र वाजपेयी उपाख्य ‘मामाजी’ की 101वीं जयंती (7 अक्टूबर) पर विशेष

लोकेन्द्र सिंह / ‘मन समर्पित, तन समर्पित और यह ज…

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पत्रकार -समाजकर्मी प्रसून लतांत को गांधी भगत सिंह सेवा राष्ट्रीय अवार्ड

पटना/ बिहार के भागलपुर जिले के वरिष्ठ पत्रकार और समाजकर्मी प्रसून लतांत को गांधी भगत सिंह सेवा राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित करने का निर्णय किया गया है। प्रसून लतांत जनसत्ता दैनिक समाचार पत्र के चीफ रिपोर्टर रहे है और गांधी और अहिंसक आंदोलनों के महत्व पर लगातार आलेख लिखते रहे हैं।  इन दिनों व…

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नोचकारिता के सिपाही

सरस्वती रमेश //

नोचकारिता के सिपाही हैं ये

बिकाऊ -चलताऊ खबरों पर

गिद्ध दृष्टि रखने और

                        चील सा झपट्टा मारने…

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खबरों की भीड़ में ....!!

तारकेश कुमार ओझा //

खबरों की  भीड़ में , 

राजनेताओं का रोग है .

अभिनेताओं के टवीट्स हैं .

अभिनेत्रियों का फरेब है .

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जनता का अख़बार कौन निकालेगा

मनोज कुमार झा //

विज्ञापन ख़बरों की तरह

और ख़बरें विज्ञापनों की तरह

अख़बार में देश-दुनिया का हाल

                               कुछ इसी तरह…

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क्या है हमारी खबरों में

रश्मि रंजन//

 

सोचती हूँ.......

क्या है हमारे विचारों में

क्या है हमारे शब्दों में

क्या है हमारी खबरों में

धर्म/ जाति/ पैसा....…

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कोविड से किताबों को खतरा

प्रमोद रंजन / कोविड : 19 ने  किताबों के बाजार को गहरा धक्का पहुंचाया है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि  वैश्विक स्तर पर 2019 में किताबों का बाजार $ 92.8 बिलियन डालर का था | 2020 में इसके घटकर $ 75.9 बिलियन  डालर रह जाने की उम्मीद है।…

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सच जानने के हमारे अधिकार को किस एक्ट के तहत बाधित किया गया है?

.... ये वही मीडिया संस्थान थे, जिन्होंने डब्लूएचओ द्वारा दी गई मानवाधिकारों का ख्याल रखने की सलाह को प्रकाशित करने से परहेज किया था...…

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मक्खलि गोसाल और उन का आजीवक चिंतन

कैलाश दहिया/ दलितों में आज महान मक्खलि गोसाल को ले कर जिज्ञासा पैदा हो गई है। ये जानना चाहते हैं मक्खलि गोसाल कौन थे? क्या वे सही में दलित चिंतक थे? उन का आजीवक धर्म क्या था और उस के सिद्धांत क्या थे? कुछ दलित तो गोसाल के दलित होने पर ही सवाल उठाते हैं। उधर, गोसाल पर लिखने वाले प…

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‘राष्ट्रवाद और मीडिया’ पर स्पष्ट दृष्टिकोण पैदा करती पुस्तक

सुरेश हिंदुस्थानी/  राष्ट्रवाद सदैव से चर्चा एवं आकर्षण का विषय रहा है। आज के परिदृश्य में तो यह और अधिक चर्चित है। सब जानना चाहते हैं कि आखिर राष्ट्रवाद क्या है? राष्ट्रवाद पर इतनी बहस क्यों होती है? क्यों कुछ लोग राष्ट्रवाद का विरोध करते हैं? राष्ट्रवाद और मीडिया के…

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पुरस्कृतों के बीच प्रतिरोध के रंगमंच का अलग चेहरा

नाट्य लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए राजेश कुमार को अकादमी पुरस्कार

लखनऊ/ उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने 13 फरवरी, 2020 को संत गाडगे जी महाराज प्…

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साहित्यकार कोश हो रहा तैयार

मातृभाषा ने उठाया हिंदी का सबसे बड़ा साहित्यकार कोश  बनाने का बीड़ा, भारत में रहने वाले रचनाकार अपना या अपने शहर के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों आदि का परिचय प्रेषित कर सकते हैं…

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जनता बेख़बर है

हिंदी के सभी प्रमुख दैनिक अख़बारों के मुख पृष्ठ ढके हैं ....... 

चंद्रेश्वर //

बीत रही जो तिथि वो तेईस जनवरी है

दो हज़ार बीस की …

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समागम के 19 वर्ष पूर्ण

पत्रिका का नया अंक ‘शब्द सत्ता की शताब्दी’

भोपाल। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ के प्रकाशन के सौ वर्ष 17 जनवरी को पूर्ण हो रहा है और 31 जनवरी को डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रकाशित-सम्पादित पत्रिक…

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सचमुच जन मीडिया की ही वकालत

'जन मीडिया' का जनवरी 2020 अंक

डॉ लीना/ 'जन मीडिया',  जनवरी 2020 का अंक काफी खास है। “हमारा समाज, हमारा शोध” पंचलाइन के साथ सालों से हर महीने प्रकाशित होने वाले 'जन मीडिया' के इस अंक में कश्मीर  मुद्दा, टीवी चैनलों को सेल्फ सेंसरशिप, बीबीसी के शार्ट …

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रिश्तों का अजायबघर है हिन्दी फिल्म 'दे दे प्यार दे'

संतोष कुमार / भारतीय परंपरा से इतर ब्राह्मण की परंपरा में रिश्तों के कोई मायने नहीं होते, यह हमें कामसूत्र और वेद-पुराण के अध्ययन से ज्ञात होता है। इसी भावना से प्रेरित हो ब्राह्मण लेखक अपनी कहानी गढ़ता है। कामसूत्री परंपरा(जारमय) के कड़ी के रूप में 'दे दे प्यार दे' फिल्म तिरोहित…

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‘अक्करमाशी’ के अपराधी को भी दंडित करवाएं चित्रा मुद्गल

'कादम्बिनी' पत्रिका के दिसंबर' 2019 अंक में लेखिका चित्रा मुद्गल के आवरण कथा पर कैलाश दहिया की टिप्पणी   

कैलाश दहिया / …

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सामाजिक न्याय की वकालत करता "हम बहुजन"

पत्रिका "हम बहुजन" का प्रवेशांक सितंबर 2019

डॉ लीना/ सामाजिक , शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक पत्रिका "हम बहुजन" का प्रवेशांक सितंबर 2019, मौजूदा भारत, संवैधानिक अधिकार  (आरक्षण) और बहुजन समाज को लेकर पाठकों के बीच आया है। हम बहुज…

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डॉ. लीना